• NASA's Artemis-1 mission postponed नासा का आर्टेमिस -1 मिशन हुआ पोस्टपोन
One of the 4 engines of the rocket malfunctioned, now it can be launched on 2 September
रॉकेट के 4 में से एक इंजन में खराबी , अब 2 सितंबर को हो सकती है लॉन्चिंग
• अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का आर्टेमिस -1 मून मिशन पोस्टपोन हो गया है । रॉकेट के चार में से एक इंजन में आई खराबी के कारण इसकी लॉन्चिंग के लिए चल रहे काउंटडाउन को कुछ देर पहले रोक दिया गया । रॉकेट की लॉन्चिंग भारतीय समयानुसार सोमवार शाम 6.03 बजे होनी थी । सब कुछ ठीक रहा तो अब लॉन्चिंग 2 सितंबर को रात 10.18 बजे होगी । दशकों से हो रही नासा के ह्यूमन मून मिशन में देरी • स्पेस लॉन्च सिस्टम ( SLS ) रॉकेट 2010 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में बना था । इस वक्त ' कॉन्स्टलेशन प्रोग्राम ' के जरिए वे अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजना चाहते थे , लेकिन मिशन में कई बार देरी के बाद सरकार ने इसे बंद करने का फैसला किया था ।
• नासा की नई प्लानिंग के तहत रॉकेट की लॉन्चिंग 2016 में होनी थी । इसके बाद डोनाल्ड ट्रम्प सरकार ने 2017 में आर्टेमिस मिशन को ऑफिशियल नाम दिया । इसमें देरी होने के बाद 2019 में उस वक्त के नासा एडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्राइडनस्टीन को पता चला कि रॉकेट को तैयार करने में अभी एक साल का समय और लगेगा ।
• इसी साल एक सरकारी रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि नासा के मिशन में हो रही देरी से सरकार को अरबों डॉलर्स का नुकसान हो रहा है । हालांकि ट्रम्प से लेकर जो बाइडेन तक , देश के सभी राष्ट्रपतियों ने आर्टेमिस मिशन को सफल बनाने के प्रयास जारी रखे । आर्टेमिस- 1 मिशन का लक्ष्य क्या है ? आर्टेमिस -1 एक मानवरहित मिशन है । पहली फ्लाइट के साथ वैज्ञानिकों का लक्ष्य यह जानना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चांद पर सही हालात हैं या नहीं । साथ ही क्या एस्ट्रोनॉट्स चांद पर जाने के बाद पृथ्वी पर सुरक्षित लौट सकेंगे या नहीं । नासा के मुताबिक नया SLS मेगा रॉकेट और ओरियन क्रू कैप्सूल चंद्रमा पर पहुंचेंगे । आमतौर पर क्रू कैप्सूल में एस्ट्रोनॉट्स रहते हैं , लेकिन इस बार यह खाली रहेगा । ये मिशन 42 दिन 3 घंटे और 20 मिनट का है , जिसके बाद कैप्सूल धरती पर वापस आ जाएगा । स्पेसक्राफ्ट कुल 20 लाख 92 हजार 147 किलोमीटर का सफर तय करेगा ।
• तीन पॉइंट्स में समझिए पूरा आर्टेमिस मिशन
1. यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर के प्रोफेसर और वैज्ञानिक जैक बर्न्स का कहना है कि आर्टेमिस -1 का रॉकेट ' हैवी लिफ्ट ' है और इसमें अब तक के रॉकेट्स के मुकाबले सबसे शक्तिशाली इंजन लगे हैं । यह चंद्रमा तक जाएगा , कुछ छोटे सेटेलाइट्स को उसके ऑर्बिट ( कक्षा) में छोड़ेगा और फिर खुद ऑर्बिट में ही स्थापित हो जाएगा ।
2. 2024 के आसपास आर्टेमिस -2 को लॉन्च करने की प्लानिंग है । इसमें कुछ एस्ट्रोनॉट्स भी जाएंगे , लेकिन वे चांद पर कदम नहीं रखेंगे । वे सिर्फ चांद के ऑर्बिट में घूमकर वापस आ जाएंगे । हालांकि इसका टाइम पीरियड ज्यादा होगा ।
3. इसके बाद फाइनल मिशन आर्टेमिस -3 को रवाना किया जाएगा । इसमें जाने वाले अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरेंगे । यह मिशन 2030 के आसपास लॉन्च किया जा सकता है । पहली बार महिलाएं भी ह्यूमन मून मिशन का हिस्सा बनेंगी । बर्न्स के मुताबिक पर्सन ऑफ कलर ( श्वेत से अलग नस्ल का व्यक्ति ) भी क्रू मेम्बर होगा । सभी लोग चंद्रमा के साउथ पोल में जाकर पानी और बर्फ की खोज करेंगे ।
• अपोलो मिशन से कैसे अलग है आर्टेमिस ? अपोलो मिशन की परिकल्पना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जे एफ केनेडी ने सोवियत संघ को मात देने के लिए की थी । उनका लक्ष्य सिर्फ अंतरिक्ष यात्रा नहीं था , बल्कि साइंस एंड लॉजी की फील्ड में अमेरिका को दुनिया में पहले स्थान पर स्थापित करना था । हालांकि अब करीब 50 साल बाद माहौल अलग है । अब अमेरिका आर्टेमिस मिशन के जरिए रूस या चीन को मात नहीं देना चाहता । नासा का उद्देश्य पृथ्वी के बाहर स्थित चीजों को अच्छी तरह एक्सप्लोर करना है । चांद पर जाकर वैज्ञानिक वहां की बर्फ और मिट्टी से ईंधन , खाना और इमारतें बनाने की कोशिश करना चाहते हैं ।
• आर्टेमिस मिशन की लागत कितनी ? नासा ऑफिस ऑफ द इंस्पेक्टर जनरल के एक ऑडिट के अनुसार , 2025 तक इस प्रोजेक्ट पर 93 बिलियन डॉलर यानी 7,434 अरब रुपए का खर्चा आएगा । वहीं , हर फ्लाइट 4.1 बिलियन डॉलर यानी 327 अरब रुपए की पड़ेगी । वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक , मिशन को लॉन्च करने से पहले की लागत ही 876 मिलियन डॉलर ( 70 अरब रुपए ) से 2 बिलियन डॉलर ( 159 अरब रुपए ) के बीच है ।
- More details-
• जुड़ा नासा 50 साल बाद एक बार फिर इंसानों को चांद पर भेजने के लिए आर्टेमिस मिशन लॉन्च करने जा रहा है । हम चांद के बारे में बता रहे हैं ।
■ चंद्रमा 27 दिन 8 घंटे में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है । इतने ही समय में वह अपनी धुरी पर भी एक बार घूम जाता है । इसलिए चांद का पिछला हिस्सा कभी भी पृथ्वी के सामने नहीं आ पाता है ।
■ सौरमंडल में आठ ग्रहों के 181 उपग्रह है । इनमें से चंद्रमा पांचवा बड़ा ग्रह है । बृहस्पति का उपग्रह गैनीमीड सबसे बड़ा है । यह बुध से भी 8 % बड़ा है ।
■ वैज्ञानिकों का मानना है कि करीब 4.5 अरब साल पहले मंगल ग्रह से भी बड़ा थैया नाम का पिंड पृथ्वी से टकराया था , जिससे एक हिस्सा टूटकर पृथ्वी से अलग हो गया और चंद्रमा बन गया ।
■ पृथ्वी पर जब चंद्र ग्रहण होता है , उस समय चंद्रमा पर सूर्य ग्रहण होता है । दरअसल , पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच में होती है , ऐसे में = VER ( 84 ) GK TT सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर नहीं पड़ पाता ।
■ चांद पर भेजे गए मिशन की वजह से इस पर करीब 1 लाख 81 हजार किलो मलबा जमा हो गया है । यह इंसान की ले जाई गई चीजें हैं या वहां भेजे गए सेटेलाइट के टुकड़े हैं । ८ शेयर
■ 1958 में अमेरिका ने अपनी ताकत दिखाने के लिए चंद्रमा पर परमाणु बम बलास्ट की योजना बनाई थी । इस मिशन का नाम A119 था । अमेरिका का मानना था कि इस विस्फोट की रौशनी धरती से टेलीस्कोप के बगैर नजर आएगी ।
■ आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते के निशान अब भी चंद्रमा पर बने हैं । यह लाखों साल तक ऐसे ही रह सकते हैं , क्योंकि वहां न हवा है , न बारिश होती है ।